
श्रद्धा -आफताब हत्या कांड और Nacro Test : पिछले कुछ दिनों से इस समय के सबसे चर्चित, कुख्यात एवं दिल दहलाने वाले श्रद्धा हत्याकांड काफी सुर्खियां बटोर रही है, इसके आरोपी आफताब अमीन पूनावाला के रहस्यमई एवं गलत जवाब के कारण पुलिस प्रशासन में ठोस सबूत एवं श्रद्धा के शरीर के सभी अंग जुटाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
इसलिए दिल्ली के महरौली में हुए हत्याकांड की जांच को लेकर दिल्ली के साकेत जिला कोर्ट ने इसके लिए Narco Test की मंजूरी दे दी। इससे संबंधित जानकारी प्राप्त करते हैं।

श्रद्धा -आफताब हत्या कांड और Nacro Test
Narco Test:-
इस जांच में आरोपी के शरीर में इंजेक्शन के माध्यम से drug को डाला जाता है, जिसे ” ट्रुथ सिरम “कहा जाता है। यह ट्रुथ सिरम सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलाइन, सोडियम एमाइटल नामक यौगिक होता है। इस कारण से आरोपी अर्ध बेहोशी की अवस्था में चला जाता है, जिस कारण से उसका दिमाग सम्मोहित हो जाता है और कल्पना कर पाने में सक्षम नहीं होता है, उसकी तर्कशक्ति भी कमजोर पड़ जाती है। जिस कारण से हुआ झूठ नहीं बोल पाता है और वह अधिकारी द्वारा पूछे गए सवालों का सही सही उत्तर देता है।
कौन कर सकता Narco Test
श्रद्धा -आफताब हत्या कांड और Nacro Test : यह जांच फॉरेंसिक विशेषज्ञ, डॉक्टर, मनोवैज्ञानिक, जांच अधिकारी एवं पुलिस प्रशासन के बड़े अधिकारी के बीच किया जाता है और इस जांच के वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जाती है।
यह जांच बूढ़े, बीमार, बच्चे एवं मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति पर नहीं किया जा सकता।
अन्य जांच के तरीके :-
पॉलीग्राफ :- पहली बार इस तरह के जांच की जानकारी 19th सदी में इटली के अपराध विशेषज्ञ शिजारे लैंब्रोसो के द्वारा की जाने की मिली तथा इसकी खोज 1921 जॉन लार्सन ने की । जिसमें आरोपी को बिना बेहोश किए उसके शरीर में मशीन के कुछ तार नुमा पॉइंट लगाकर उससे सवाल किया जाता है, सही गलत का फैसला उसके हृदय की धड़कन, ब्लड प्रेशर, हाथ पैर की मूवमेंट, पसीना आना एवं नाडी की गति के आधार पर किया जाता है, यह भी अदालत में मान्य नहीं होता है परंतु इसके आधार पर पाए गए भौतिक साक्ष्य को अदालत में मान्य होता है।
ब्रेन मेपिंग :-
इसका आविष्कार अमेरिका के न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर लॉरेंस ए फारवेल ने किया, एक हेलमेट की तरह उपकरण होता है, जो कि व्यक्ति के मस्तिष्क पर लगाया जाता है। यह मशीन अपराधी को अपराध से जुड़े चित्र या ध्वनि को देखने या सुनाने के बाद उसके मस्तिष्क में उत्पन्न हुए तरंगों के आधार पर जानकारी को उपलब्ध कराता है।
Nacro टेस्ट एवं भारतीय कानून
भारतीय कानून के अनुसार न्यायालय नारको टेस्ट, पॉलीग्राफ, ब्रेन मेपिंग को वैध नहीं मानती है।
” सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य 2010 “के मामले में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश K G बालकृष्ण न्यायाधीश, आर वी रविंद्रन एवं न्यायाधीश जी एम पंचाल की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस प्रकार की जांच से प्राप्त जानकारी को न्यायालय में मान्य नहीं माना गया है। परंतु इस प्रकार की जांच से प्राप्त जानकारी के आधार पर पाए गए भौतिक साक्ष्य (physical evidence)को न्यायालय में मान्य होगा।
न्यायालय के अनुसार यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है यह एक क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक कृत है। अनुच्छेद 21 में प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता की बात कही गई है।
इसके साथ ही इस तरह की जांच व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ होती है जिस कारण यह अनुच्छेद 20(3) का भी उल्लंघन करता है जिसमें व्यक्तिगत का स्वतंत्रता की बात कही गई है और अपराधी का खुद के विरोध दिए गए बयान का न्यायालय में मान्य नहीं होगा।
न्यायालय के अनुसार Narco टेस्ट के लिए न्यायालय के मंजूरी के अलावा खुद अपराधी की मंजूरी भी होना आवश्यक है।
किस किस case में नारको टेस्ट किया गया
अजमल कसाब 26/11 केस, इंद्रानी मुखर्जी शीना बोरा केस, आरुषि तलवार मर्डर केस, उन्नाव रेप केस, हाथरस रेप केस, आदि के समय नारको टेस्ट किया गया।
इसकी शुरुआत कब हुई :– इसकी शुरुआत 1922 में अमेरिका के टेक्सास के एक डॉक्टर रोबोट हाउस में दो कैदी पर स्कोपोलाइन ड्रग देकर की, परंतु मुख्य रूप से इसका प्रयोग द्वितीय विश्वयुद्ध में पकड़े गए सैनिकों पर किया गया।
हालांकि इस प्रकार की जांच में 100% सही जानकारी नहीं मिल पाता है, इसके साथ ही मानसिक रूप से मजबूत व्यक्ति, मानसिक प्रशिक्षण प्राप्त अपराधी उस अवस्था में भी गलत जवाब दे सकते हैं।
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FAQ
Narco Test टेस्ट क्या होता है ?
इस टेस्ट में व्यक्ति को ड्रग्स दिया जाता है और नशे की हालत में उससे सवाल किए जाते हैं, जिसका उत्तर वह व्यक्ति नशे की हालत में हो रही है कारण सही देता है और वह झूठ नहीं बोल पाता है |
Narco Test की शुरुआत कब हुई ?
इसकी शुरुआत 1922 में अमेरिका के टेक्सास के एक डॉक्टर रोबोट हाउस में दो कैदी पर स्कोपोलाइन ड्रग देकर की, परंतु मुख्य रूप से इसका प्रयोग द्वितीय विश्वयुद्ध में पकड़े गए सैनिकों पर किया गया।