Bhagwad Gita In Hindi PDF : भगवद गीता भारतीय धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ है, जो महाभारत युद्ध के युद्धभूमि कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुई उनकी वार्तालाप को संकलित किया हुआ है। यह ग्रंथ महाभारत के भीष्म पर्व के अन्तर्गत आता है और इसमें 700 श्लोक होते हैं।
भगवद गीता के माध्यम से श्रीकृष्ण अर्जुन को उसके धर्मयुद्ध के दुखद और संघर्षपूर्ण स्थितियों का समाधान देते हैं और उसे अपने कर्तव्य की प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं। इसके अलावा, भगवद गीता में जीवन, मृत्यु, धर्म, कर्म, भक्ति और ज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होती है। यह ग्रंथ भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता की महत्वपूर्ण धारा है और उसके विचार और सिद्धांत आज भी मानवता के जीवन को प्रेरित करते हैं।

Bhagwad Gita In Hindi PDF Overview
PDF Name | Bhagwad Gita In Hindi |
No.of Pages | 1305 |
PDF Size | 8.5 MB |
Language | Hindi & Sanskrit |
Tags | Bhagwad Gita , Bhagwad Gita in hindi |
PDF Category | Religious and spirituality |
Last Update | 2023 |
Source / Credits | Multiple Sources |
Uploaded By | gyankibaten.co.in |
Bhagwad Gita PDF Download In Hindi
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श्रीमद्भगवद्गीता का मुख्य उद्देश्य
भगवद गीता का उद्देश्य व्यक्ति को धर्मपूर्ण और उच्चतम जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन करना है। यह ग्रंथ जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने और समस्याओं के समाधान के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसका मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है:
- धर्म का पालन: गीता में धर्म के महत्व का उद्देश्य है। यह बताता है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।
- कर्म और कर्मफल की निष्कामता: गीता में कर्म और कर्मफल की निष्कामता का महत्वपूर्ण उद्देश्य है। यह बताता है कि कर्म करना महत्वपूर्ण है, लेकिन कर्मफल पर आसक्ति नहीं रखनी चाहिए।
- भक्ति और उपासना: गीता में भगवान की भक्ति और उपासना के महत्व का उद्देश्य है। यह बताता है कि भगवान के प्रति भक्ति और श्रद्धा रखना आत्मा को शुद्धि देता है।
- समस्याओं का समाधान: गीता में व्यक्ति की समस्याओं के समाधान के लिए उपायों का प्रदान किया गया है। यह बताता है कि सही दिशा और विचारधारा से किए गए कर्म से समस्याओं का समाधान संभव होता है।
- आत्मा का ज्ञान: गीता में आत्मा के अद्वितीयता और अमरत्व का ज्ञान प्रदान करने का उद्देश्य है। यह बताता है कि आत्मा शरीर से अद्वितीय है और मृत्यु के बाद भी अमर है।
भगवद गीता का उद्देश्य मानवता को आदर्श जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन करना है, जो कि धर्म, कर्म, भक्ति, ज्ञान और उपासना के माध्यम से संभव होता है।
गीता मे हृदयं पार्थ गीता मे सारमुत्तमम्।
गीता मे ज्ञानमत्युग्रं गीता मे ज्ञानमव्ययम्।।
गीता मे चोत्तमं स्थानं गीता मे परमं पदम्।
गीता मे परमं गुह्यं गीता मे परमो गुरुः।।
भगवान श्री कृष्ण :- गीता मेरा हृदय है। गीता मेरा उत्तम सार है। गीता मेरा अति उग्र ज्ञान है। गीता मेरा अविनाशी ज्ञान है। गीता मेरा श्रेष्ठ निवासस्थान है। गीता मेरा परम पद है। गीता मेरा परम रहस्य है। गीता मेरा परम गुरु है।
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता।।
महर्षि व्यास :- जो अपने आप श्रीविष्णु भगवान के मुखकमल से निकली हुई है वह गीता अच्छी तरह कण्ठस्थ करना चाहिए। अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या लाभ?
गेयं गीतानामसहस्रं ध्येयं श्रीपतिरूपमजस्रम्।
नेयं सज्जनसंगे चित्तं देयं दीनजनाय च वित्तम।।
श्रीमद् आद्य शंकराचार्य :- गाने योग्य गीता तो श्रीगीता का और श्रीविष्णुसहस्रनाम का गान है। धरने योग्य तो श्री विष्णु भगवान का ध्यान है। चित्त तो सज्जनों के संग पिरोने योग्य है और वित्त तो दीन-दुखियों को देने योग्य है।
स्वामी विवेकानन्द :- इस अदभुत ग्रन्थ के 18 छोटे अध्यायों में इतना सारा सत्य, इतना सारा ज्ञान और इतने सारे उच्च, गम्भीर और सात्त्विक विचार भरे हुए हैं कि वे मनुष्य को निम्न-से-निम्न दशा में से उठा कर देवता के स्थान पर बिठाने की शक्ति रखते हैं।
महामना मालवीय जी :- एक बार मैंने अपना अंतिम समय नजदीक आया हुआ महसूस किया तब गीता मेरे लिए अत्यन्त आश्वासनरूप बनी थी। मैं जब-जब बहुत भारी मुसीबतों से घिर जाता हूँ तब-तब मैं गीता माता के पास दौड़कर पहुँच जाता हूँ और मुझे गीता माता में से समाधान न मिला हो ऐसा कभी नहीं हुआ है।
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श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक इन हिंदी | Bhagwat Geeta in Hindi pdf
आज इस लेख के माध्यम से भगवत गीता के श्लोको को आप तक हिंदी भाषा में बेहद ही सरल तरीके से प्रकाशित कर रहे हैं | भगवत गीता हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ महाभारत के श्रीकृष्ण अर्जुन को उसके धर्मयुद्ध के दुखद और संघर्षपूर्ण स्थितियों का समाधान देते हैं और उसे अपने कर्तव्य की प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं |
भगवत गीता एक समान व्यक्ति को जिंदगी जीने का सही तरीका का मार्गदर्शन करवाती है | यह बताती है कि किस प्रकार मनुष्य अपने कर्तव्य से डर कर पीछे भागता है और अधर्म के रास्ते पर चलता है | भगवत गीता हमें धर्म, कर्म, भक्ति ,आत्मा ,परमात्मा का ज्ञान करवाता है | जिस प्रकार अर्जुन महाभारत के समय अपने प्रिय जनों को देखकर घबरा जाते हैं और अपने कर्तव्य से पीछे हटते हैं | उसी प्रकार हम अपने जीवन की कठिनाइयों से पीछे भागते हैं | अगर हम भगवत गीता का सही से स्मरण करे तो हमें जिंदगी जीने का सही मतलब समझ आएगा |
Bhagvat Geeta Original Book PDF in Hindi
धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥
धृतराष्ट्र बोले—हे संजय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्रमें एकत्रित, युद्धकी इच्छावाले मेरे और पाण्डुके पुत्रोंने क्या किया ? ॥ १॥
सञ्जय उवाच
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ॥
संजय बोले—उस समय राजा दुर्योधनने व्यूहरचनायुक्त पाण्डवोंकी सेनाको देखकर और द्रोणाचार्यके पास जाकर यह वचन कहा ॥२॥
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥
हे आचार्य! आपके बुद्धिमान् शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्नद्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डु पुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिये ॥३॥
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ॥
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः ॥
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ॥
इस सेनामें बड़े-बड़े धनुषोंवाले तथा युद्धमें भीम और अर्जुनके समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान् काशिराज, पुरुजित् कुन्तिभोज और मनुष्योंमें श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान् उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदीके पाँचों पुत्र- ये सभी महारथी हैं॥४–६॥
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम ।
नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान् ब्रवीमि ते ॥
हे ब्राह्मणश्रेष्ठ ! अपने पक्षमें भी जो प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिये । आपकी जानकारीके लिये मेरी सेनाके जो-जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूँ ॥ ७ ॥
भवान् भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः ।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ॥
आप- द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्तका पुत्र भूरिश्रवा ॥ ८ ॥
अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः ।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ॥
और भी मेरे लिये जीवनकी आशा त्याग देनेवाले बहुत-से शूरवीर अनेक प्रकारके शस्त्रास्त्रोंसे सुसज्जित और सब-के-सब युद्धमें चतुर हैं ॥ ९ ॥
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् ।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ॥
भीष्मपितामहद्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकारसे अजेय है और भीमद्वारा रक्षित इन लोगोंकी यह सेना जीतनेमें सुगम है ॥ १० ॥
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः ।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥
इसलिये सब मोर्चोंपर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आपलोग सभी निःसन्देह भीष्मपितामहकी ही सब ओरसे रक्षा करें ॥ ११ ॥
श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय | Bhagwat Geeta PDF in Hindi
(अध्याय – 1) अर्जुन -विषाद योग :-
इस अध्याय में महाभारत के युद्धभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की तैयारियों के दौरान भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए वाद-विवाद का वर्णन किया गया है। यह अध्याय 47 श्लोकों में बिखरा है।
इस अध्याय में अर्जुन अपने विचारों और दुविधाओं का वर्णन करते हैं, जो उन्हें युद्ध करने में आ रहे हैं। वह युद्ध में अपने प्रियजनों, गुरुओं और दोस्तों को मारने के प्रति आत्मसंवाद करते हैं, जिससे वह आत्मा के विचारों में डूब जाते हैं। इससे उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है और उन्हें युद्ध के प्रति उत्साह नहीं रहता।
अर्जुन की यह स्थिति भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा समझाई जाती है और उन्होंने उन्हें उनके कर्तव्य की महत्वपूर्णता के बारे में बताया। इस अध्याय के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं और उनके अंशकल्याण के लिए उपदेश देते हैं।
(अध्याय -2) सांख्य-योग :-
सांख्य योग” में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश दिया जाता है। इस अध्याय में आत्मा के अद्वितीयता, कर्म की महत्वपूर्णता, समता और त्याग के महत्व, और आत्मा की अमरता के बारे में चर्चा होती है। यह अध्याय महत्वपूर्ण धार्मिक और दार्शनिक तत्वों की गहरी विवेचना करता है।
(अध्याय -3) कर्मयोग :-
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कर्म का तात्पर्य और उसके निष्कामता के बारे में बताया गया है।
कर्मयोग में आपातकाल में भी कर्म करने का मार्ग दिखाया गया है, लेकिन निष्काम भाव से। यहाँ यह उपदेश दिया जाता है कि कर्मयोगी को कर्म में लगने और उसके फलों में आसक्त नहीं होना चाहिए, बल्कि केवल कर्म के लिए उसका कर्तव्य पालन करना चाहिए।
इस अध्याय में कर्मयोग के माध्यम से आत्मा के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का विवेचन होता है और यह बताता है कि कर्म में समर्पित होकर भी आत्मा के स्वतंत्र और अद्वितीय होने का उपाय क्या है।
(अध्याय -4) ज्ञान कर्म संन्यास योग :-
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा जीवन के विभिन्न पहलुओं का विवेचन किया गया है।
यह अध्याय विभिन्न युगों में भगवान के अवतारों का महत्व और उनके उद्देश्य का वर्णन करता है। इसके साथ ही, ज्ञान, कर्म और संन्यास के तत्त्वों के बारे में भी चर्चा होती है, और यह बताता है कि ये तीनों योगों में से कौन-सा योग सबसे श्रेष्ठ है।
इस अध्याय में ज्ञान की महत्वपूर्णता, कर्म के यज्ञ में यज्ञ दान का महत्व, और संन्यास के प्रकारों का विवरण दिया गया है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को कर्मों में आसक्त नहीं होना चाहिए और संन्यासी को भी कर्म में आसक्त नहीं होना चाहिए। यह अध्याय आत्मज्ञान, समर्पण, और सेवा के महत्व को प्रमोट करता है।
(अध्याय -5) आत्मसंयम योग :-
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा आत्मसंयम की भूमिका और उसके लाभों का वर्णन किया गया है।
आत्मसंयम योग में मन को शांत करने, इन्द्रियों को निग्रह करने और आत्मा को प्राप्त करने के उपायों का विवेचन होता है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को आत्मसंयम के माध्यम से आत्मा की प्राप्ति करनी चाहिए और उसे सम्पूर्ण अध्यात्मिक उन्नति की दिशा में बढ़ना चाहिए।
इस अध्याय में आत्मसंयम के तत्त्वों का वर्णन करते हुए यह बताया गया है कि योगी को भोजन, सोना और जागरण में मितव्यय करना चाहिए और उसे सब कर्मों को ईश्वर के लिए आदर्शन करना चाहिए। आत्मसंयम द्वारा योगी अपनी चित्तशांति और आत्मा के प्रति समर्पण प्राप्त कर सकता है।
(अध्याय -6) ज्ञानविज्ञान योग :-
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा ध्यान योग के महत्वपूर्ण सिद्धांतों की चर्चा होती है।
ध्यान योग में आत्मा के प्रति निष्काम भाव से ध्यान करने का उपाय बताया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को एक शांत और निरंतर मन के साथ बैठकर आत्मा को समझना चाहिए और उसे अपने मन को शांत करने का उपाय बताया गया है।
इस अध्याय में ध्यान योग के माध्यम से आत्मा की प्राप्ति के तत्त्वों की चर्चा होती है और यह बताता है कि योगी को अपने मन को नियंत्रित करने, इन्द्रियों को संयमित करने और आत्मा के प्रति समर्पित रहकर आत्मा की प्राप्ति करनी चाहिए। ध्यान योग के माध्यम से योगी अपने मन को शांत करके आत्मा को प्राप्त कर सकता है।
(अध्याय -7) अक्षरब्रह्मयोग :-
इस अध्याय में आत्मा के स्वरूप, ईश्वर की महत्वपूर्णता, और भक्ति के माध्यम से आत्मा की प्राप्ति के तरीके की चर्चा होती है।
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को भगवान के अद्वितीय स्वरूप को समझना चाहिए और उसे भक्ति और समर्पण के माध्यम से आत्मा को प्राप्त करना चाहिए। भगवान द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को विचारशीलता के साथ भगवान की भक्ति में लगना चाहिए और उसे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति करनी चाहिए।
इस अध्याय में भगवान के अद्वितीय स्वरूप का विवेचन करते हुए यह बताया गया है कि योगी को ईश्वर की अनन्तता और महत्वपूर्णता को समझना चाहिए और उसे भक्ति के माध्यम से आत्मा की प्राप्ति करनी चाहिए। भक्ति और ज्ञान के माध्यम से योगी अपने आत्मा को प्राप्त कर सकता है।
(अध्याय -8) राजविद्याराजगुह्य योग :-
इस अध्याय में योगी को मृत्यु के समय आत्मा की प्राप्ति के तरीके का विवरण दिया जाता है।
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को अपने मन को नियंत्रित करने और आत्मा को स्मरण के साथ प्राप्त करने का उपाय बताया जाता है। भगवान द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को मृत्यु के समय अपने मन को शांत करने और आत्मा को याद करने के माध्यम से आत्मा की प्राप्ति करनी चाहिए।
इस अध्याय में योगी को आत्मा के स्वरूप के बारे में विवेचना करते हुए यह बताया गया है कि आत्मा अमर होती है और उसे मृत्यु के बाद भी नष्ट नहीं होता। भगवान द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को भक्ति और समर्पण के माध्यम से आत्मा की प्राप्ति करनी चाहिए और मृत्यु के समय अपने मन को नियंत्रित करके आत्मा का स्मरण करते हुए आत्मा को प्राप्त कर सकता है।
(अध्याय -9) विभूति योग :-
इस अध्याय में भगवान की विभूतियों का वर्णन करते हुए आत्मा के स्वरूप की महत्वपूर्णता को समझाया गया है।
इस अध्याय में भगवान द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को ईश्वर की विभूतियों का समर्पण करना चाहिए और उनके माध्यम से उसके अद्वितीय स्वरूप की प्रतिष्ठा करनी चाहिए। भगवान द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को सभी जीवों में एकता देखनी चाहिए और उन्हें भक्ति और समर्पण के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति करनी चाहिए।
इस अध्याय में भगवान की विभूतियों के माध्यम से आत्मा के स्वरूप की महत्वपूर्णता को व्यक्त करते हुए यह बताया गया है कि भगवान की विभूतियों में उसका अद्वितीय स्वरूप प्रकट होता है और उन्हें जानकर योगी अपने आत्मा को प्राप्त कर सकता है। भगवान द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को भक्ति और समर्पण के माध्यम से भगवान की प्राप्ति करनी चाहिए और उसके विभूतियों में उसका अद्वितीय स्वरूप देखना चाहिए।
(अध्याय -10) विश्वस्वरूपदर्शन योग :-
इस अध्याय में भगवान द्वारा अपने दिव्य स्वरूप का प्रदर्शन करते हुए उनके विभूतियों और महत्व की महत्वपूर्णता को समझाया गया है।
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को उनके दिव्य स्वरूप की अनगिनत विभूतियों को देखकर भक्ति और समर्पण के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति करनी चाहिए। भगवान द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को सभी जीवों में उनके दिव्य स्वरूप की पहचान करनी चाहिए और उन्हें भक्ति और समर्पण के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति करनी चाहिए।
इस अध्याय में भगवान के विभूतियों का प्रदर्शन करते हुए आत्मा के स्वरूप की महत्वपूर्णता को व्यक्त करते हुए यह बताया गया है कि आत्मा के अद्वितीय स्वरूप को समझकर योगी उनके साथ भक्ति और समर्पण के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है। भगवान द्वारा उपदिश्य जाता है कि योगी को भक्ति और समर्पण के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति करनी चाहिए और उनके दिव्य स्वरूप की पहचान करनी चाहिए।
श्रीमद्भागवत गीता के पढ़ने के लाभ व फायदे | Shrimad Bhagwat Geeta Book in Hindi PDF
“श्रीमद्भागवत गीता” को पढ़ने के कई लाभ और फायदे होते हैं:-
- कर्म और कर्मयोग: गीता में कर्म के महत्व और उसे सही तरीके से करने का उपाय बताया गया है।
- आत्मज्ञान और समझ: गीता में दिए गए उपदेश आत्मा के बारे में ज्ञान प्रदान करते हैं और हमें हमारे जीवन के मार्ग को समझने में मदद करते हैं।
- मानवता और नैतिकता: गीता में नैतिकता, धर्म और मानवता के महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार किए गए हैं और हमें सही मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
- स्वधर्म का अध्ययन: यह हमें अपने स्वधर्म की महत्वपूर्णता को समझने में मदद करता है और हमें उसे निभाने के उपायों का ज्ञान प्रदान करता है।
- समाधान और उत्तरदायित्व: गीता में दिए गए उपदेश हमें जीवन की चुनौतियों का समाधान ढूंढने में मदद करते हैं और हमें अपने उत्तरदायित्व को स्वीकार करने का प्रेरणा देते हैं।
- स्त्रेस और तनाव कम करने की कला: गीता के उपदेश स्त्रेस, तनाव और चिंता को कम करने में मदद करते हैं और आत्मशांति प्राप्त करने का उपाय बताते हैं।
- ध्यान और मेधा: गीता में ध्यान और मेधा के महत्व का वर्णन किया गया है, जो हमें विचारशीलता और मानसिक सामर्थ्य में सुधार करने में मदद करते हैं।
- योग के विभिन्न प्रकार: गीता में विभिन्न प्रकार के योगों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है, जैसे कि कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग आदि।
- आत्मा की उन्नति: गीता में दिए गए उपदेश आत्मा की उन्नति और आध्यात्मिक विकास की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
“श्रीमद्भागवत गीता” को पढ़कर हम अपने जीवन को सही दिशा में दिशानिर्देश प्राप्त कर सकते हैं और आत्मा की सार्थकता को समझकर उसे अधिक गहराई से जान सकते हैं।
FAQ
प्रश्न: भगवद गीता क्या है?
उत्तर:- भगवद गीता, भारतीय धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ है जो “महाभारत” महाकाव्य के भीष्म पर्व के अंतर्गत मिलता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश के माध्यम से जीवन के मार्ग का निर्देश और आत्मा के विकास के तरीके पर चर्चा की गई है।
प्रश्न: भगवद गीता किस पर आधारित है?
उत्तर:- भगवद गीता का आधार “महाभारत” के महाकाव्य पर है, जो व्यास महर्षि द्वारा लिखा गया था। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने उपदेश के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर संवाद किया है।
प्रश्न: गीता में कितने अध्याय हैं?
उत्तर: भगवद गीता में कुल 18 अध्याय हैं।
प्रश्न: गीता किस भाषा में लिखी गई है?
उत्तर: भगवद गीता की रचना संस्कृत भाषा में की गई है।
प्रश्न: गीता के उपदेश क्या हैं?
उत्तर: गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग और सांख्ययोग के माध्यम से आत्मा के स्वरूप की प्राप्ति, धर्म के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया है।
प्रश्न: गीता के कुछ प्रमुख उपदेश क्या हैं?
उत्तर: गीता में कुछ प्रमुख उपदेश शांति के लिए कर्म करने का उपदेश, निष्काम कर्म का महत्व, आत्मा के अद्वितीय स्वरूप का ज्ञान, भक्ति और समर्पण की महत्व, और धर्मी जीवन जीने का उपदेश शामिल हैं।
प्रश्न: गीता के क्या महत्व हैं?
उत्तर: भगवद गीता मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है जो आत्मा के स्वरूप, जीवन के मार्ग, कर्म के माहत्व, और धर्म के प्रति सही दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह आत्मा की सार्थकता और सच्चे धर्म के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देने में मदद करता है।
निष्कर्ष :-
इस आर्टिकल में हमने आपको “श्रीमद् भागवत गीता” जो कि हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों में से एक है | यह”महाभारत” के महाकाव्य पर आधारित है | हम आशा करते हैं कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो | अगर आप इसी प्रकार की धर्म ग्रंथ, पौराणिक ग्रंथों को डाउनलोड करना चाहते हैं तो आप हमारे इस वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं | अगर आपके मन में इस आर्टिकल से जुड़ी किसी भी प्रकार की कोई समस्या है तो आप हमें कमेंट में भी पूछ रहे हैं |
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